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कविता

फ्रेम से सौंदर्य

गुलाब सिंह


मूल धन के रूप में
हैं बाग वासंती
तितलियों के पंख
भी हैं ब्याज में।

तौल करके फूल कलियाँ
थोक में बाजार वाले
खुशबुओं के चुने गट्ठर
ले गए दरबार वाले
चमन में बेजान बहसें
छिड़ीं बुलबुल बाज में।

फ्रेम में सौंदर्य मढ़कर
घरों में ऋतुराज लाए
चाँदनी, झरने, लहरते खेत
कोयल आम बौराए
पारदर्शी प्यार देखें
पत्थरों के ‘ताज’ में।

चीख पर लगते ठहाके
भोग छप्पन और फाँके
सौ अँधेरों में घिरे हैं
खिली सरसों के इलाके
जिंदगी की चिंदियाँ
चिपकी हुई कोलाज में।
 


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